Saturday, August 27, 2016

पल दो पल की है जिंदगानी

पल दो पल की है जिंदगानी
जिसका ना कोई भरोसा  ना कोई  ठिकाना
एक दिन जिस्म को छोड़कर  जान को भी है जाना
फिर इस जान का गुमान कैसा, दीवानी
पल दो पल ..........




सुबह आती है आकर चली जाती है
फूल खिलते है खिलकर मुरझा जाते है
लोग मिलते है मिलकर बिछुड़  जाते है
लहर उठती है उठकर सागर में मिल जाती है
जिन्दगी का दस्तूर यही है, ये सिखलाती है
फिर इसका गुमान कैसा, दीवानी
पल दो पल ........


टूट गया ढाल से जो फूल फिर दुबारा ना खिला
बिछुड़ गया रहा में जो फिर दुबारा ना मिला
सिकवा करू क्या मैं अपनी किस्मत से
बड़ी मन्नत से माँगा था खुदा से
जो अपना था वही  वही साथ छोड़ गया
फिर किसी के साथ का गुमान कैसा, दीवानी
पल दो पल .......

राज सागर